सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छठ माता की पूरी कहानी

छठ माता की कहानी

 में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों द्वारा पराजित हो गए थे तब देवमाता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवानंद के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी, मैं आदित्य की आराधना कार्तिक मास की अमावस्या अर्थात दिवाली के दिन जाने के चार दिवस बाद या व्रत किया जाता है, जिसके करने के बाद छठ माता प्रसन्न होकर माता अदिति को सर्व गुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया, 

 इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्हें हम सूर्य भगवान के नाम से जानते हैं जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई ऐसा कहा जाता है, 

 कि उसी समय देवसेना सस्ती देवी के नाम से इस धाम का नाम रखा गया, और तभी से हिंदू रीति-रिवाजों में छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया, 

छठ पूजा एक पावन और अनन्य श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पवित्र हिंदू पर्व है, छठ पूजा की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथों मैं कहीं नहीं है, इसके बावजूद छठ पर्व पावन पर्व माना जाता है, 

 यह मुख्यता बिहारियों का पर्व है, सर्वप्रथम बिहार में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को अब देश तथा विदेशों में भी मनाया जाने लगा है, यह इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं होता है, सिर्फ सूर्य को अर्घ्य दकर इस पूरे पर्व का उद्यापन और समापन होता है, 

 यह पर्व में कठोर अनुशासन को पालन करते हुए मनाया जाता है, इसमें पवित्र गंगा स्नान उपवास, खरना, तथा अंत में अर्ध देना शामिल है, इस पर्व को सभी स्त्रियों के अलावा पुरुष भी करते हैं, 

 शुरुआत

 इस पर्व की शुरुआत नहाए खाए से होती है नहाए खाए अर्थात, कार्तिक महीने के शुक्ल चतुर्थी को अपने नजदीकी स्थित गंगा नदी या कोई सहायक नदी तालाब में जाकर स्नान करते हैं, लेकिन उसके पहले घर को पूरी तरह से साफ सफाई कर उसे पवित्र कर लिया जाता है, 

 नहाए खाए के दिन वृत्ति दिन में केवल एक ही बार भोजन करती है, 


खरना या लोहंडा 

 छठ का दूसरा दिन जिसे हम लोहंडा या खन्ना के नाम से जानते हैं, खरना कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रहकर संध्या बेला में चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग करके बनाती है, जिसमे नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है, 
 वृत्ति एकांत में बनाए हुए पकवान को ग्रहण करती है तथा इस समय किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है इसलिए परिवार के ज्यादातर सदस्य बाहर चले जाते हैं ताकि घर में कोई शोर ना हो सके, 

 वृत्ति के खा कर उठ जाने के बाद सभी परिवारजनों और मित्र रिश्तेदारों तथा आसपास के लोगों को वही खीर और रोटी का प्रसाद मिलता है, इस संपूर्ण प्रक्रिया जिसे हम करना या लोहंडा कहते हैं, खरना के दिन बिहार में लोगों में तरह-तरह के भ्रांतियां हैं कहीं-कहीं पर बगैर नमक का दाल चावल गुड़, पूरी, दूध तथा की बनी पीठीया बनाई जाती है, जबकि कहीं-कहीं पर गन्ने के रस से बनी खीर और रोटी तथा केले का प्रसाद भरोसे जाते हैं, 

 संध्या अर्घ 

 छठ पर्व के तीसरे दिन अर्थात संध्या बेला इस, सभी वृत्ति और साथ में सूर्य देव को चढ़ाए जाने के लिए बनाए जाने वाला खास ठेकुआ, लड्डू और फल,  केले की कांदि, नारियल, एक बांस की बनी हुई टोकरी में लेकर सभी घाट पर जाते हैं जहां सूर्य भगवान को अर्घ देकर सभी महिलाएं गीत गाते हुए वापस आती है, सभी टोकरी ओ को उसी प्रकार देव मंदिर पूजा घर कहते हैं वहां रख दिया जाता है ताकि उस टोकरी को कोई अपवित्र ना कर सके, 


 प्रात काल अर्घ्य 

 चौथे दिन शुक्ल सप्तमी को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है सूर्योदय से पहले ही लोग घर पर पहुंच जाते हैं जिसके बाद सभी वह व्रती संग अर्घ देते हैं और कंद मल फल इत्यादि को सूर्य देव को अर्पित कर इस पर्व का समापन होता है, जिसके बाद सूर्य देव को अर्पित किए गए प्रसाद को मुंह में लेकर व्रती अपना व्रत खोलती है, 

इस तरह या व्रत चार दिनों की तपस्या के समान होता है क्योंकि इतना लंबा उपवास आज तक किसी पर या पूजा त्यौहार में नहीं किया जाता इसलिए इसे एक तपस्या अभी







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Balidan :बलिदान

Balidan :बलिदान  कुलीन वंश में पैदा हो कर एक बार एक पंडित संसार से वितृष्ण हो संन्यासी का जीवन-यापन करने लगा।  उसके आध्यात्मिक विकास और संवाद से प्रभावित हो कुछ ही दिनों में अनेक सन्यासी उसके अनुयायी हो गये। एक दिन अपने प्रिय शिष्य अजित के साथ जब वह एक वन में घूम रहा था तब उसकी दृष्टि वन के एक खड्ड पर पड़ी जहाँ भूख से तड़पती एक बाघिन अपने ही नन्हे-नन्हे बच्चों को खाने का उपक्रम कर रही थी।  गुरु की करुणा बाघिन और उसके बच्चों के लिए उमड़ पड़ी। उसने अजित को पास की बस्ती से बाघिन और उसके बच्चों के लिए कुछ भोजन लाने के लिए भेज दिया। फिर जैसे ही अजित उसकी दृष्टि से ओझल हुआ वह तत्काल खाई में कूद पड़ा और स्वयं को बाघिन के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। भूखी बाघिन उसपर टूट पड़ी और क्षण भर में उसने अपना भूख शांत किया । अजित जब लौटकर उसी स्थान पर आया उसने गुरु को वहाँ न पाया। तो जब उसने चारों तरफ नज़रें घुमाईं तो उसकी दृष्टि खाई में बाघिन और उसके बच्चों पर पड़ी।  वे खूब प्रसन्न हो किलकारियाँ भरते दीख रहे थे।  किन्तु उनसे थोड़ी दूर पर खून में सने कुछ कपड़ों के चीथड़े बिखरे पड़े थे...

रविवर व्रत कथा

रविवार व्रत कथा : सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाले और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा हेतु सर्वश्रेष्ठ व्रत रविवार की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी. वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती.  रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था. उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी. अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी. पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी.  आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई. रात्र...

श्री तुलसी चालीसा संग्रह

श्री तुलसी चालीसा : मंगलमयी और चमत्कारी है इसका पाठ ।। श्री तुलसी चालीसा ।।    ।। दोहा ।।    जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।  नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी।।  श्री हरी शीश बिरजिनी , देहु अमर वर अम्ब।  जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ।।  । चौपाई ।   धन्य धन्य श्री तलसी माता ।  महिमा अगम सदा श्रुति गाता ।।  हरी के प्राणहु से तुम प्यारी । हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।।  जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो । तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ।।  हे भगवंत कंत मम होहू । दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ।।  सुनी  लख्मी  तुलसी की बानी । दीन्हो श्राप कध पर आनी ।।  उस अयोग्य वर मांगन हारी । होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ।।  सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा । करहु वास तुहू नीचन धामा ।।  दियो वचन हरी तब तत्काला । सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।।  समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा । पुजिहौ आस वचन सत मोरा  ।।  तब गोकुल मह गोप सुदामा । तासु भई तुलसी तू बामा ।।  कृष्ण रास लीला के माही । राधे शक्यो प्रेम लख...