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आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  :

पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!!

प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है।

गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है। 

संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-

 मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में भोग लेता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चैरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्म के अनुसार जन्म लेता है। तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क को प्राप्त करता है।

गरूड़ पुराण के अनुसार जो दूसरे की सम्पत्ति को हड़पता है, मित्र से विश्वासघात करता है, ब्राह्मणों की सम्पत्ति से छीनता है , मन्दिर से धन चुराता है, परायी-स्त्री या पर-पुरूष से व्यभिचार करता है, निर्बल को सताता है, जो अपनी निर्दोष माता, बहन, पुत्री, स्त्री, पुत्रवधु, पुत्र, इन्हें बिना किसी कारण के त्यागता है उसे भयंकर नरक योनि में जाना पड़ता है एवं उसकी कभी मुक्ति नहीं होती है।

व्यापार में हानि, घर में कलह,l ज्वर, संतान से जुडा कस्ट दुःख मिलते है। अन्त समय उसका बड़ा कष्टमय होता है तथा मरने के पश्चात वह भयंकर प्रेत योनि में चला जाता है।


शीघ्रंप्रचलदुष्टात्मन् गतोऽसित्वं यमायलं
                 कुम्भीपाकादिनरकात्वं नेष्यामश्च माचिम्            

दुष्ट एवं पापी व्यक्ति को यमदूत पकड़ कर कुम्भीपाक आदि नरकों में कोड़े मारते हुये, घसीटते हुये लिये चलते हैं। वहाँ यमदूत उसे पाश में बाँध देते हैं। वह भूख-प्यास से अत्यधिक व्याकुल और विकल होकर दुःख सहन करते हुये रोता है। उस समय संसार त्यागने के समय दिये दान अथवा स्वजनों द्वारा मष्त्यु के समय दिये पिण्डों को वह खाता है, 

पिण्ड दान देने पर भी वह भूख एवं प्यास से व्याकुल लगता है। माँस खाने वाले व्यक्ति को नरक में वे सभी जीव मिलते हैं, जिनका उसने माँस- खाया था, और वे वहाँ उसके माँस को नोचते रहते हैं तथा वह कई कल्पों तक प्रेत योनि में भटकता रहता है।

वास्तव मे गरूड़ पुराण सुनने से मनुष्य को सच्चे ज्ञान एवं वैराग्य की प्राप्ति होती है और वह बुरे कर्म करने से बचता है तथा जीवन का यथार्थ ज्ञान उसे मिलता है। 

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