Balidan :बलिदान
कुलीन वंश में पैदा हो कर एक बार एक पंडित संसार से वितृष्ण हो संन्यासी का जीवन-यापन करने लगा।
उसके आध्यात्मिक विकास और संवाद से प्रभावित हो कुछ ही दिनों में अनेक सन्यासी उसके अनुयायी हो गये।
एक दिन अपने प्रिय शिष्य अजित के साथ जब वह एक वन में घूम रहा था तब उसकी दृष्टि वन के एक खड्ड पर पड़ी जहाँ भूख से तड़पती एक बाघिन अपने ही नन्हे-नन्हे बच्चों को खाने का उपक्रम कर रही थी।
गुरु की करुणा बाघिन और उसके बच्चों के लिए उमड़ पड़ी। उसने अजित को पास की बस्ती से बाघिन और उसके बच्चों के लिए कुछ भोजन लाने के लिए भेज दिया। फिर जैसे ही अजित उसकी दृष्टि से ओझल हुआ वह तत्काल खाई में कूद पड़ा और स्वयं को बाघिन के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। भूखी बाघिन उसपर टूट पड़ी और क्षण भर में उसने अपना भूख शांत किया ।
अजित जब लौटकर उसी स्थान पर आया उसने गुरु को वहाँ न पाया। तो जब उसने चारों तरफ नज़रें घुमाईं तो उसकी दृष्टि खाई में बाघिन और उसके बच्चों पर पड़ी।
वे खूब प्रसन्न हो किलकारियाँ भरते दीख रहे थे।
किन्तु उनसे थोड़ी दूर पर खून में सने कुछ कपड़ों के चीथड़े बिखरे पड़े थे जो निस्सन्देह उसके गुरु के थे। गुरु ने बाघिन के नन्हे बच्चों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी थी ! गुरु की करुणा और त्याग से उसका शीश श्रद्धा से झुक गया।
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