सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मन्त्र शक्ति

मन्त्र शक्ति 
~~~~~~~~~
मन्त्र वो शक्ति है, जो पल मे लोगो की मनोकामना पूर्ण कर दे, मन्त्र के तेज से संसार की ना मिलने वाली वस्तु भी इंसान के कदमो मे होती है, लेकिन कभी कभी मन्त्र साधना से घातक नुकसान देखे जाते है, 

प्राचीन काल मे रोग मन्त्र के उच्चारण से ही ठीक हो जाते थे, इसलिए वैध से ज्यादा साधु, फ़क़ीर, तांत्रिक, ओझा, इत्यादि के ब्यापार काफी फले फुले रहते है, परन्तु विज्ञान के इस दौर मे रोगों के उपचार मन्त्र द्वारा करना अंधविश्वास कहलाता है |
मन्त्र तीन प्रकार के होते है",... स्त्रीलिंग, पुल्लिंग तथा नपुंसक !"
मंत्रो के उच्चारण से मन्त्र का कल्याण कार्य जाना जाता है, अर्थात मन्त्र को पढ़कर जाना जा सकता है की यह मन्त्र किस देवता से जुडा है, अथवा इसका कार्य क्या है?? 

मंत्रो मे भी बिशेषता: अनेक प्रकार होते है,.................. जैसे सात्विक मन्त्र ,दैविक मन्त्र,  वैदिक मन्त्र, तांत्रिक मन्त्र इत्यादि, 

सात्विक मन्त्र 
~~~~~~~~~~~

सात्विक वैसे मन्त्र होते है, जिनके उच्चारण मात्र से मन मे सात्विकता का वास हो जाता है, यह किसी देवी देवताओं से जुडा नहीँ होता, इनका काम ही होता है सत्य से पहचान कराना, ऐसे मन्त्र के सही उच्चारण से लोगो के जीवन से अंधेरा सदा सदा के लिए गायब हो जाता है, तथा उन्हें खुशहाल रखने मे इन मंत्रो का बड़ा हाथ होता है, 
सात्विक मन्त्र से लोगो की कुबूद्धि नस्ट होकर सुबुद्धि का संचरण होता है, 
"अनजाने मे लोग कभी कभी गलत मन्त्र भी पढ़ लेते है, लेकिन इनके गलत पढ़े जाने पर भी हानि नहीँ होती |"


दैविक मन्त्र 
~~~~~~~~~

दैविक मन्त्र वैसे मन्त्र होते है, जो मूलतः किसी देवताओं से सम्भन्ध रखता हो, तथा उस मन्त्र के उच्चारण से किसी ख़ास देव को प्रसंन्न किया जाता हो, ऐसे मन्त्र देव साधना मे अति आवश्यक होते है, "बगैर दैविक मन्त्र उच्चारण के देवताओं की पूजा मान्य नहीँ होती, "| जिस किसी ख़ास देव की पूजा हो रही हो, तो विधिवत उसी देव के लिए ऐसे मंत्रो का उच्चारण किया जाता है, दैविक मंत्रो मे काफी शक्ति होती है, इससे ग्रहदोष भी शांत हो जाते है, परन्तु खंडित मन्त्र या गलत मन्त्र उच्चारण से कोई परिणाम नहीँ मिलता, कभी कभी गलत मन्त्र उच्चारण से गलत परिणाम भी देते देखे गए है, ""

दैविक मंत्रो मे विधिवत आसन्न ग्रहण करके इन मंत्रो का पुरे नियम पूर्वक उच्चारण से इसके अच्छे परिणाम मिलते है, किन्तु अगर आप निरंतर भी दैविक मंत्रो का उच्चारण करे तो भी आपको इसके फल मिलेंगे, गलत मन्त्र उच्चारण कभी कभी समस्याओ को निमंत्रण भी दे देती है, "|


वैदिक मन्त्र 
~~~~~~~~~~
वैदिक मन्त्र ऐसे मन्त्र कहलाते है, जो मनुष्य के कल्याण के लिए वेदो के समय लिखें अथवा उल्लेखित किये गए हो, वैदिक मंत्रो के उच्चारण से मनुष्य सफलता, ज्ञान, धान लाभ, तथा अच्छा स्वास्थ्य पाते है, इन मंत्रो से घर की सुद्धीकरण, ग्रह शांति इत्यादि के लिए किया जाता है, साथ साथ वास्तु दोष जैसे गंभीर दोषों के निवारण मे भी इन मंत्रो का विशेष उपयोग है, इन मंत्रो को ऋषि मुनियो द्वारा खाश प्रयोजन के लिए  उद्घोषित किया जाता था, 

तांत्रिक मन्त्र 
~~~~~~~~~~
तांत्रिक मन्त्र मूलतः तांत्रिको, द्वारा प्रतिष्ठित मन्त्र होते है, इन मंत्रो के उच्चारण मात्र से ही आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है, ऐसे मन्त्र शक्तिशाली होने के साथ साथ खतरनाक होते है 
परन्तु आजकल देखा जाता है, लोग ऐसे मन्त्र इंटरनेट की माध्यम से बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेते है, औऱ बगैर इसकी सावधानी औऱ असावधानी जाने लोग इन मंत्रो का उच्चारण शुरू कर देते है, 
तांत्रिक मन्त्र, आपको राजा से रंक,या रंक से राजा बना देता है, दुश्मनों का नाश करता है, मनपसंद युवक युवती को तांत्रिक मंत्रो द्वारा वशीकरण भी किया जाता है, ऐसे मन्त्र को केवल तांत्रिक क्रिया करते समय उच्चारण किया जाना चाहिए, बगैर इसकी पूर्ण जानकारी के ये आपका पतन  करने मे सक्छम होता है, "|

अगर कोई ब्यक्ति रोगों से घिरा हो तो उस घर मे तांत्रिक मन्त्र उच्चारण घातक सिद्ध हो सकता है, "
कभी कभी देखा जाता है की लोग शक्ति शाली बनने की  कामना करके किसी भी मन्त्र को उच्चरित करना प्रारम्भ कर देते है, औऱ बाद मे यदि कोई अनिस्ट हो जाता है तो लोग समझ भी नहीँ पाते की ऐसा कैसे हो गया, जबकि दोषी वो  स्वयं होते है, 

सुचना -" किसी भी तांत्रिक मन्त्र को उच्चारण करने से पहले उसकी पूरी तरह से जांच पड़ताल अवश्य कर ले, अथवा आप लाभ की जगह स्वयं का नुकसान कर लेंगे |""

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

छठ माता की पूरी कहानी

छठ माता की कहानी  में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों द्वारा पराजित हो गए थे तब देवमाता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवानंद के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी, मैं आदित्य की आराधना कार्तिक मास की अमावस्या अर्थात दिवाली के दिन जाने के चार दिवस बाद या व्रत किया जाता है, जिसके करने के बाद छठ माता प्रसन्न होकर माता अदिति को सर्व गुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया,   इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्हें हम सूर्य भगवान के नाम से जानते हैं जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई ऐसा कहा जाता है,   कि उसी समय देवसेना सस्ती देवी के नाम से इस धाम का नाम रखा गया, और तभी से हिंदू रीति-रिवाजों में छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया,  छठ पूजा एक पावन और अनन्य श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पवित्र हिंदू पर्व है, छठ पूजा की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथों मैं कहीं नहीं है, इसके बावजूद छठ पर्व पावन पर्व माना जाता है,   यह मुख्यता बिहारियों का पर्व है, सर्वप्रथम बिहार में हिंदुओं द्वारा म...

जीवतिया मुहूर्त एवं कथा

हिन्दू मान्यताओ मे अष्विन माष के कृष्णपक्ष मे जीवतिया का पर्व मनाया जाता है, यह विशेषत्या उत्तरप्रदेश बिहार का पर्व है | जीवित्पुत्रिका पूजन का सही समय  आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर होगा. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहेगी. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा. जीवित्पुत्रिका कथा  नर्मदा नदी के पास एक नगर था कंचनबटी. उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था. नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी. उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया. लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया. सियारिन को अब भूख लगने लगी थी. मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया. पर चील ने संयम रखा औ...