सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कहानी भीमसेन की

कहानी भीमसेन की 
~~~~~~~~~~~~~~
भीमसेन का विवाह हिडिंबा नाम की एक राक्षसी के साथ भी हुआ था| 
वह भीमसेन पर आसक्त हो गई थी और उसने स्वयं आकर माता कुंती से प्रार्थना की थी कि वे उसका विवाह भीमसेन के साथ करा दें|
 कुंती ने उस विवाह की अनुमति दे दी, लेकिन भीमसेन ने विवाह करते समय यह कवच उससे ले लिया कि एक संतान पैदा होने के पश्चात वह संबंध तोड़ लेगा| 

भीमसेन ने कुछ दिन तक हिडिंबा के साथ सहवास किया, इससे वह गर्भवती हो गई और उसके गर्भ से एक बड़ा विचित्र बालक पैदा हुआ, जिसका मस्तक हाथी के मस्तक जैसा और सिर केश-शून्य था| इसी कारण उसका नाम घटोत्कच पड़ा |

चूंकि घटोत्कच की माता एक राक्षसी थी, पिता एक वीर क्षत्रिय था, इसलिए इसमें मनुष्य और राक्षस दोनों के मिश्रित गुण विद्यमान थे| यह बड़ा क्रूर और निर्दयी था| पाण्डवों का बड़ा आत्मीय था| पांचों भाई इसको अपना पुत्र समझकर प्यार करते थे, इसलिए यह उनके लिए मर-मिटने को सदैव तत्पर रहता था|

महाभारत युद्ध के बीच इसने अपना पूर्ण पौरुष दिखाया था| देखा जाए तो इसने वह काम किया, जो एक अच्छे से अच्छा महारथी नहीं कर पाता| कर्ण सेनापति बनकर कौरवों के पक्ष से युद्ध कर रहा था| 

वह बड़ा अद्भुत योद्धा था| उसके पास इंद्र की दी हुई ऐसी शक्ति थी जिससे वह किसी भी पराक्रमी से पराक्रमी योद्धा को मार सकता था, वह शक्ति कभी खाली जा ही नहीं सकती थी| वैसे कर्ण की निगाह अर्जुन पर लगी हुई थी| वह उस शक्ति के द्वारा अर्जुन का वध करना चाहता था| श्रीकृष्ण इसको समझते थे, इसी कारण उन्होंने घटोत्कच को रण-भूमि में उतारा| 

इस राक्षस ने आकाश से अग्नि और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बरसाना, आरंभ किया, उससे कौरव-सेना में हाहाकर मच उठा| सभी त्राहि-त्राहि करके भागने लगे| कर्ण भी इसकी मार से घबरा गया| उसने अपनी आखों से देखा कि इस तरह तो कुछ ही देर में सारी कौरव सेना नष्ट हो जाएगी, तब लाचार होकर उसने घटोत्कच पर उस अमोघ शक्ति का प्रयोग किया|

 उससे तो कैसा भी वीर नहीं बच सकता था| अत: घटोत्कच क्षण-भर में ही निर्जीव होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा| श्रीकृष्ण को इससे बड़ी प्रसन्नता हुई| पाण्डवों को उसकी मृत्यु से दुख हुआ था, लेकिन श्रीकृष्ण ने सारी चाल उनको समझाकर उन्हें संतुष्ट कर दिया|

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

छठ माता की पूरी कहानी

छठ माता की कहानी  में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों द्वारा पराजित हो गए थे तब देवमाता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवानंद के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी, मैं आदित्य की आराधना कार्तिक मास की अमावस्या अर्थात दिवाली के दिन जाने के चार दिवस बाद या व्रत किया जाता है, जिसके करने के बाद छठ माता प्रसन्न होकर माता अदिति को सर्व गुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया,   इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्हें हम सूर्य भगवान के नाम से जानते हैं जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई ऐसा कहा जाता है,   कि उसी समय देवसेना सस्ती देवी के नाम से इस धाम का नाम रखा गया, और तभी से हिंदू रीति-रिवाजों में छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया,  छठ पूजा एक पावन और अनन्य श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पवित्र हिंदू पर्व है, छठ पूजा की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथों मैं कहीं नहीं है, इसके बावजूद छठ पर्व पावन पर्व माना जाता है,   यह मुख्यता बिहारियों का पर्व है, सर्वप्रथम बिहार में हिंदुओं द्वारा म...

जीवतिया मुहूर्त एवं कथा

हिन्दू मान्यताओ मे अष्विन माष के कृष्णपक्ष मे जीवतिया का पर्व मनाया जाता है, यह विशेषत्या उत्तरप्रदेश बिहार का पर्व है | जीवित्पुत्रिका पूजन का सही समय  आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर होगा. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहेगी. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा. जीवित्पुत्रिका कथा  नर्मदा नदी के पास एक नगर था कंचनबटी. उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था. नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी. उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया. लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया. सियारिन को अब भूख लगने लगी थी. मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया. पर चील ने संयम रखा औ...