सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

करवा चौथ की पूजा विधि

करवा चौथ की पूजा विधि
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सामग्री

रोली , मोली , पताशा ,चावल , गेहू , करवां , पानी का कलश ,लाल कपड़ा ,चाँदी की अँगूठी एक ब्लाउज पीस  ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~±~~
पूजा     
                   
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है यह व्रत सुहागिन महिलाए अपने पति की लम्बी आयु व स्वस्थ जीवन के लिए करती है ।

इस दिन एक करवां या गिलास लेकर उसमें चावल भरे , उसमे एक सिक्का व एक पताशा डाले व लाल कपड़े से बांध दे। कहानी सुनने के लिए मिट्टी से चार कोण का चोका लगाये ,चारो कोणों पर रोली से बिंदी लगाये । 

बीच मिट्टी या सुपारी से गणेशजी बनाकर रखे और रोली ,मोली व चावल से गणेशजी की पूजा करे ।अब चोके के ऊपर करवां रखे उसपर ब्लाउज पीस रखे ,पानी का कलश ,पताशा व चाँदी की अँगूठी रखे । अपने हाथ में चार गेहू के दाने लेकर कथा सुने । 

जब चौथ की कथा सुनने के बाद जो चार गेहू के दाने है उसे तो रात में चाँद को अर्ग देने के लिए रख ले व दुसरे चार दाने लेकर गणेशजी की कहानी सुने और उसके बाद सूर्य को अर्ग दे जो चाँदी की अँगूठी हमने पूजा में रखी थी उसे भी अर्ग देते समय हाथ में ले लेवे । 

रात में चंद्रोदय होने पर जो गेहू के दाने रखे है उससे अर्ग दे व भोग लगाये ।करवां और ब्लाउज पीस अपनी सास या ननद को दे उसके बाद अपना व्रत खोले ।

**********
कथा

सात भाई थे उनके एक बहन थी । सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे और हमेशा उसके साथ ही खाना खाते थे । जब बहन की शादी हो गई तो बहन ने करवां चौथ का व्रत किया ।सभी भाई शाम को खाना खाने बैठे तो अपनी बहन को खाने की लिए बुलाया। 

तब बहन ने कहा कि "आज मेरे चौथ माता का व्रत है " तब भाइयो ने सोचा की चाँद पता नही कब तक उदय होगा अपनी बहन तो भूखी है उन सबने उपाय सोचा और पहाड़ पर जाकर आग जलाई और उसके आगे चालनी लगाकर चाँद बना दिया और बोले कि "बहन चाँद उग आया "वह अपनी भाभियों से बोली कि "चाँद उग आया " तो भाभियां बोली कि " ये चाँद आप के लिए उगा है वह भोली थी नकली चाँद के अर्ग देकर भाइयो के साथ खाना खाने बैठ गई ।

उसने जैसे ही पहला ग्रास तोडा तो उसमे बाल आ गया , दूसरा तोड़ा इतने में उसके ससुराल से बुलावा आ गया की लड़की को तुरंत ससुराल भेजो ।

जब माँ ने बेटी को विदा करने के लिए कपड़ो का बक्सा खोला तो उसमे भी सबसे पहले काला कपड़ा ही निकला तब माँ बहुत डर गई ।

उसने अपनी बेटी को एक चाँदी का सिक्का देते हुए कहा कि "तुझे रास्ते में जो भी मिले उसके पैर छूती जाना और जो तुझे सुहागन होने का आशीर्वाद दे उसे ये सिक्का दे देना और अपने पल्लू पर गांठ बांध लेना "। वो पुरे रास्ते ऐसा ही करती गई पर किसी ने उसे सुहागन होने का आशीर्वाद नही दिया । 

जब वह अपने ससुराल पहुचीं तो बाहर उसकी जेठुती खेल रही थी उसने उसके पैर छुए तो उसने सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया तो उसने सिक्का जेठुती को दिया और पल्लू पर गांठ बांध ली ।जब घर के अन्दर गई तो देखा की उसका पति मरा पड़ा है

जब उसके पति को जलाने के लिए ले जाने लगे तो उसने नही ले जाने दिया । तब सबने कहा कि "गाँव में लाश नही रहने देगे " तो गाँव के बाहर एक झोपडी बना दी वह उसमे रहने लगी और अपने पति की सेवा करने लगी । रोज घर से बच्चे उसे खाना दे जाते ।

कुछ समय बाद माघ की चौथ आई तो उसने व्रत किया ।रात को चौथ माता गाजती गरजती आई तो उसने माता के पैर पकड़ लिए ।माता पैर छुड़ाने लगी बोली " सात भाइयो की बहन घनी भूखी मेरे पैर छोड़ "। जब उसने पैर नही छोड़े तो चौथ माता बोली कि " मैं  कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी बैशाख की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ना । 

कुछ समय बाद बैशाख की चौथ आई तो उसने कहा कि "मैं कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी भादवे की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ना । जब भादवे की चौथ आई तो उसने भी यही कहा कि "मैं कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी कार्तिक चौथ है वो ही तेरे पति को जीवन दे सकती है लेकिन वो तेरे से सुहाग का सामान मांगेगी तो तू वो सब तैयार रखना लेकिन मैंने  तुझे ये सब बताया है ऐसा मत कहना "।

जब कार्तिक चौथ आई तो उसने अपने पति के लिए व्रत रखा । रात को चौथ माता आई तो उसने पैर पकड़ लिए तो  माता बोली "सात भाइयो की लाड़ली बहन घणी  भूखी , घणी तिसाई ,पापिनी मेरे पैर छोड़ "। 

तब वो बोली कि "माता मेरे से भूल हो गई मुझे माफ कर दो ,और मेरे पति को जीवन दान दो "। जब उसने माता के पैर नही छोड़े तो माता बोली कि "ठीक है जो सामान मैं मांगू वो मुझे लाकर दे "। 

माता ने जो सामान माँगा वो उसने लाकर दे दिया । तब चौथ माता बोली कि "तुझे ये सब किसने बताया "। वो बोली कि " माता मैं इस जंगल में अकेली रहती हूँ मुझे ये सब बताने यहाँ कौन आएगा "। 

चौथ माता ने माँग में से सिंदूर लिया, आँख में से काजल व चिटली अंगुली से मेहँदी निकालकर उसके पति के छिटा तो उसका पति जीवित हो गया । माता ने उसके पति को जीवित कर दिया और सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया ।

सुबह बच्चे जब खाना लेकर आये ,तो अपने चाचा को जीवित पाया । दौडकर घर गये और सबको बताया कि "चाचा जीवित हो गए "। सब लोग वहा गए तो देखा की बच्चे सच कह रहे है । 

अपने बेटे को जीवित देखकर सास बहु के पैर पड़ने लगी तो बहु बोली "सासुजी आप ये क्या कर रही है मैंने कुछ नहीं किया ये तो चौथ माता ने किया है " । हे चौथ माता जैसे उसको सुहाग दिया वैसे सभी को देना ।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

छठ माता की पूरी कहानी

छठ माता की कहानी  में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों द्वारा पराजित हो गए थे तब देवमाता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवानंद के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी, मैं आदित्य की आराधना कार्तिक मास की अमावस्या अर्थात दिवाली के दिन जाने के चार दिवस बाद या व्रत किया जाता है, जिसके करने के बाद छठ माता प्रसन्न होकर माता अदिति को सर्व गुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया,   इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्हें हम सूर्य भगवान के नाम से जानते हैं जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई ऐसा कहा जाता है,   कि उसी समय देवसेना सस्ती देवी के नाम से इस धाम का नाम रखा गया, और तभी से हिंदू रीति-रिवाजों में छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया,  छठ पूजा एक पावन और अनन्य श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पवित्र हिंदू पर्व है, छठ पूजा की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथों मैं कहीं नहीं है, इसके बावजूद छठ पर्व पावन पर्व माना जाता है,   यह मुख्यता बिहारियों का पर्व है, सर्वप्रथम बिहार में हिंदुओं द्वारा म...

जीवतिया मुहूर्त एवं कथा

हिन्दू मान्यताओ मे अष्विन माष के कृष्णपक्ष मे जीवतिया का पर्व मनाया जाता है, यह विशेषत्या उत्तरप्रदेश बिहार का पर्व है | जीवित्पुत्रिका पूजन का सही समय  आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर होगा. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहेगी. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा. जीवित्पुत्रिका कथा  नर्मदा नदी के पास एक नगर था कंचनबटी. उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था. नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी. उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया. लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया. सियारिन को अब भूख लगने लगी थी. मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया. पर चील ने संयम रखा औ...