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सत्य कथा

सत्य कथा 
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एक बार की बात है, एक प्रेमी जोड़ा था, रामा और श्रीधर दो नो ही काफ़ी आकर्षक दीखते थे, दोनों एक दूसरे की से बेहद प्रेम करते थे, और हर वक्त एकदूसरे की याद मे खोये रहते, दोनों मे बेइंतेहा प्यार था |

एकदूसरे के बगैर रह पना दोनों के  लिए नामुमकिन  था, फिर अचानक किसी बात पर उनकी बहस हो गयी, और वो बहस इसकदर हावी हुआ के दोनों एकदूसरे से रूठ गए |

श्रीधर ने ठान लिया के इसबार मैं नहीँ मनाऊंगा "

और उधर रमा ने भी बात न करने की ठान ली |

तभी अचानक से एक दिन श्रीधर का पुराना मित्र चन्दन से मुलाक़ात हुई | चन्दन मे कुछ अनोखा था, जो सब नहीँ समझ सकते थे, श्रीधर भी उस बारे मे बात न करना ठीक समझता |
श्रीधर और चन्दन दोनों एकदूसरे से दोबारा मिलकर खुश थे, दोनों की दोस्ती काफ़ी फलने फूलने लगी, चन्दन ने अपने बीते दिनों की सारी बाते श्रीधर को बताई, श्रीधर सारी बातो को गहराई से सुनता और समझता |

चन्दन और रमा दोनों काफ़ी धार्मिक परिवृति के थे, जिसकारण श्रीधर चन्दन को रमा की बाते बताता, लेकिन चन्दन के अंदर कुछ अलौकिक शक्ति थी, गांव वाले उस बात को न मानकर बस इतना जानते थे की चन्दन पर किसी भुत प्रेत का साया है, चन्दन  भी सब समझता  और हसकर सारी बाते टालते जाता , 

कभी कभी चन्दन श्रीधर को अपनी बातो से चौका देता  लेकिन श्रीधर इस मामले मे बिल्कुल ही संजीदा नहीँ था !"""

दोनों को दोबारा मिले काफ़ी दिन हों गए, दोनों काफ़ी समय एक साथ बिताने लगे, तभी अचानक श्रीधर ने मजाक मज़ाक मे चन्दन के कद को लेकर हास्य प्रद बाते करने लगा, चन्दन का कद  काफ़ी छोटा था ,  श्रीधर से ऐसी उम्मींद न थी इसलिए श्रीधर की बाते चन्दन के दिल मे ठीस की तरह जा लगी, और चंंदन  की आँखों से आंसू छलक पड़े, 
इधर श्रीधर अपने धुन मे मग्न था और भविष्य मे आने वाली उस विपत्ति से भी अनजान था |

चन्दन भी दो दिनों तक श्रीधर से मिलने नहीँ आया , और जब आया तो पता चला की श्रीधर अपनी माँ के लिए काफ़ी परेशान है, क्युकी उसकी माँ के पैरो मे साँप ने काट लिया |

काफ़ी झाड़ फुक करने के बाद भी उसकी माँ ठीक नहीँ हों पा रही थी, श्रीधर समझ नहीँ पा रहा था अचानक ये सब क्या हों गया, घर मे श्रीधर के और दो भाई थे, उनकी जिम्मेदारी श्रीधर के कंधे पर आ गयी, जिसकरान श्रीधर काफ़ी परेशान रहने लगा, माँ की देखभाल और दोनों  भाई  की जिम्मेदारी से बिल्कुल अस्त ब्यस्त हों चूका था, फिर उसे अचानक चंदन दिखा , उसके मन मे गाँव वालो की बाते घर कर गयी उसे भी यहीं लगने लगा, ये सब चन्दन के करण ही हुआ है, 

उसने उस दिन से चन्दन से बात करना बिल्कुल  बंद सा कर दिया और अपने दिलो दिमाग़ मे चन्दन  के लिए काफ़ी कड़वी बाते रखने लगा | 

कभी कभी तकलीफ ज्यादा होने पर उसके दिमाग़ मे गाँव वालो के साथ मिलकर चन्दन को गाँव से निकलवाने का भी मन बना चूका था |

इधर चन्दन  इन सब बातो से अनजान दूसरे तीसरे आने जाने वाले लोगो से श्रीधर की माँ की खबर पूछा करता  |

श्रीधर को अचानक से रमा की याद सताने लगी, वो मन मे सोच रहा था के ना वो रूठती और ना मैं चन्दन से दोबारा मिलता, और ये सब होता, रामा फिर से श्रीधर के दिलो दिमाग़ मे घर करने लगी |

इधर चन्दन श्रीधर की माँ के लिए चिंतित था  और उसके ठीक होने के लिए भगवान से प्राथना करने लगा,  तभी उसे एहसास  हुआ के श्रीधर मुसीबत मे है, जब वो श्रीधर के घर पंहुचा तो वहा पहले से रमा ख़डी थी और श्रीधर को सान्तवना दे रही थी, रमा के बारे मे श्रीधर से सुना था, पर देखा नहीँ कभी, लेकिन आज वो सामने थी, 

रमा को देखकर चन्दन की  शक्तियां उसके आँखों मे रमा की बीती पिछले जन्मो की झलक दिखा रही थी जिसमे वो एक अभिमानी, साहसी, सन्यासी थी | जो हर दिन कृष्ण के दर्शन करना अपना पहला धर्म समझती थी, उसके अंदर का ह्रदय स्त्र्री रूप मे जितना कोमल था, पिछले जन्म मे अपने तप के अभिमान मे उतना ही कठोर हों रखा था, सन्यासी रूप धरे वाह मंदिर अवश्य जाता,किन्तु अपने शर्तो पे | उसका स्वाभिमान काफ़ी उच्च कोटि का था, जिसकारण इस जन्म मे भी वाह कृष्ण जी की भक्त और संपूर्ण गुणों से समाहित होकर जन्मी थी |

श्रीधर ने चन्दन को रमा से मिलवाया, चन्दन ने तो रमा की अगली पिछली सारी जानकारी पहले ही मालूम कर ली थी , यही तो खासियत थी चन्दन के तपोबल की |

रमा के जाने के बाद श्रीधर दुविधा मे था, चन्दन उसे एक आंख भी नहीँ भा रहा था,  वो चन्दन को भी उसी तरह आहत करने के मनसूबे मे था | 

चन्दन ने श्रीधर की माँ की हालत जान ली और बिना कहे अपनी शक्तियां झोक चूका था , श्रीधर की माँ को लेने देवगन दरवाजे तक आ गए , चन्दन ये बात भाप चूका था  इसलिए उसने मन ही मन अपने आराध्य का आह्वाहन किया, और फिर वहा से चल दीया ! 

श्रीधर की माँ की हालत अच्छी तो नहीँ थी पर खतरा टल चूका था, और एक समय बाद वो स्वस्थ भी हों गयी, लेकिन श्रीधर मन ही मन चन्द से खपा था, और उसके इरादे भी चन्दन के प्रति गलत हुए जा रहे थे |

चन्दन  श्रीधर की सारी मन की बाते समझ चूका था, इसलिए उसने भी रुकना ठीक नहीँ समझा, और हमेशा हमेशा के के लिये वहा से निकल गया  |

श्रीधर ताउम्र अनजान ही रहा की जिसे वो दोषी मान रहा था, उसने तो निकलते हुए प्राण वापस ला दिए थे, सायद यहीं कारण रहा होगा श्रीधर और चन्दन के दोबारा मिलने का ||


                       "   धन्यवाद  "

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