सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सत्य कथा

सत्य कथा 
~~~~~~~~~~~

एक बार की बात है, एक प्रेमी जोड़ा था, रामा और श्रीधर दो नो ही काफ़ी आकर्षक दीखते थे, दोनों एक दूसरे की से बेहद प्रेम करते थे, और हर वक्त एकदूसरे की याद मे खोये रहते, दोनों मे बेइंतेहा प्यार था |

एकदूसरे के बगैर रह पना दोनों के  लिए नामुमकिन  था, फिर अचानक किसी बात पर उनकी बहस हो गयी, और वो बहस इसकदर हावी हुआ के दोनों एकदूसरे से रूठ गए |

श्रीधर ने ठान लिया के इसबार मैं नहीँ मनाऊंगा "

और उधर रमा ने भी बात न करने की ठान ली |

तभी अचानक से एक दिन श्रीधर का पुराना मित्र चन्दन से मुलाक़ात हुई | चन्दन मे कुछ अनोखा था, जो सब नहीँ समझ सकते थे, श्रीधर भी उस बारे मे बात न करना ठीक समझता |
श्रीधर और चन्दन दोनों एकदूसरे से दोबारा मिलकर खुश थे, दोनों की दोस्ती काफ़ी फलने फूलने लगी, चन्दन ने अपने बीते दिनों की सारी बाते श्रीधर को बताई, श्रीधर सारी बातो को गहराई से सुनता और समझता |

चन्दन और रमा दोनों काफ़ी धार्मिक परिवृति के थे, जिसकारण श्रीधर चन्दन को रमा की बाते बताता, लेकिन चन्दन के अंदर कुछ अलौकिक शक्ति थी, गांव वाले उस बात को न मानकर बस इतना जानते थे की चन्दन पर किसी भुत प्रेत का साया है, चन्दन  भी सब समझता  और हसकर सारी बाते टालते जाता , 

कभी कभी चन्दन श्रीधर को अपनी बातो से चौका देता  लेकिन श्रीधर इस मामले मे बिल्कुल ही संजीदा नहीँ था !"""

दोनों को दोबारा मिले काफ़ी दिन हों गए, दोनों काफ़ी समय एक साथ बिताने लगे, तभी अचानक श्रीधर ने मजाक मज़ाक मे चन्दन के कद को लेकर हास्य प्रद बाते करने लगा, चन्दन का कद  काफ़ी छोटा था ,  श्रीधर से ऐसी उम्मींद न थी इसलिए श्रीधर की बाते चन्दन के दिल मे ठीस की तरह जा लगी, और चंंदन  की आँखों से आंसू छलक पड़े, 
इधर श्रीधर अपने धुन मे मग्न था और भविष्य मे आने वाली उस विपत्ति से भी अनजान था |

चन्दन भी दो दिनों तक श्रीधर से मिलने नहीँ आया , और जब आया तो पता चला की श्रीधर अपनी माँ के लिए काफ़ी परेशान है, क्युकी उसकी माँ के पैरो मे साँप ने काट लिया |

काफ़ी झाड़ फुक करने के बाद भी उसकी माँ ठीक नहीँ हों पा रही थी, श्रीधर समझ नहीँ पा रहा था अचानक ये सब क्या हों गया, घर मे श्रीधर के और दो भाई थे, उनकी जिम्मेदारी श्रीधर के कंधे पर आ गयी, जिसकरान श्रीधर काफ़ी परेशान रहने लगा, माँ की देखभाल और दोनों  भाई  की जिम्मेदारी से बिल्कुल अस्त ब्यस्त हों चूका था, फिर उसे अचानक चंदन दिखा , उसके मन मे गाँव वालो की बाते घर कर गयी उसे भी यहीं लगने लगा, ये सब चन्दन के करण ही हुआ है, 

उसने उस दिन से चन्दन से बात करना बिल्कुल  बंद सा कर दिया और अपने दिलो दिमाग़ मे चन्दन  के लिए काफ़ी कड़वी बाते रखने लगा | 

कभी कभी तकलीफ ज्यादा होने पर उसके दिमाग़ मे गाँव वालो के साथ मिलकर चन्दन को गाँव से निकलवाने का भी मन बना चूका था |

इधर चन्दन  इन सब बातो से अनजान दूसरे तीसरे आने जाने वाले लोगो से श्रीधर की माँ की खबर पूछा करता  |

श्रीधर को अचानक से रमा की याद सताने लगी, वो मन मे सोच रहा था के ना वो रूठती और ना मैं चन्दन से दोबारा मिलता, और ये सब होता, रामा फिर से श्रीधर के दिलो दिमाग़ मे घर करने लगी |

इधर चन्दन श्रीधर की माँ के लिए चिंतित था  और उसके ठीक होने के लिए भगवान से प्राथना करने लगा,  तभी उसे एहसास  हुआ के श्रीधर मुसीबत मे है, जब वो श्रीधर के घर पंहुचा तो वहा पहले से रमा ख़डी थी और श्रीधर को सान्तवना दे रही थी, रमा के बारे मे श्रीधर से सुना था, पर देखा नहीँ कभी, लेकिन आज वो सामने थी, 

रमा को देखकर चन्दन की  शक्तियां उसके आँखों मे रमा की बीती पिछले जन्मो की झलक दिखा रही थी जिसमे वो एक अभिमानी, साहसी, सन्यासी थी | जो हर दिन कृष्ण के दर्शन करना अपना पहला धर्म समझती थी, उसके अंदर का ह्रदय स्त्र्री रूप मे जितना कोमल था, पिछले जन्म मे अपने तप के अभिमान मे उतना ही कठोर हों रखा था, सन्यासी रूप धरे वाह मंदिर अवश्य जाता,किन्तु अपने शर्तो पे | उसका स्वाभिमान काफ़ी उच्च कोटि का था, जिसकारण इस जन्म मे भी वाह कृष्ण जी की भक्त और संपूर्ण गुणों से समाहित होकर जन्मी थी |

श्रीधर ने चन्दन को रमा से मिलवाया, चन्दन ने तो रमा की अगली पिछली सारी जानकारी पहले ही मालूम कर ली थी , यही तो खासियत थी चन्दन के तपोबल की |

रमा के जाने के बाद श्रीधर दुविधा मे था, चन्दन उसे एक आंख भी नहीँ भा रहा था,  वो चन्दन को भी उसी तरह आहत करने के मनसूबे मे था | 

चन्दन ने श्रीधर की माँ की हालत जान ली और बिना कहे अपनी शक्तियां झोक चूका था , श्रीधर की माँ को लेने देवगन दरवाजे तक आ गए , चन्दन ये बात भाप चूका था  इसलिए उसने मन ही मन अपने आराध्य का आह्वाहन किया, और फिर वहा से चल दीया ! 

श्रीधर की माँ की हालत अच्छी तो नहीँ थी पर खतरा टल चूका था, और एक समय बाद वो स्वस्थ भी हों गयी, लेकिन श्रीधर मन ही मन चन्द से खपा था, और उसके इरादे भी चन्दन के प्रति गलत हुए जा रहे थे |

चन्दन  श्रीधर की सारी मन की बाते समझ चूका था, इसलिए उसने भी रुकना ठीक नहीँ समझा, और हमेशा हमेशा के के लिये वहा से निकल गया  |

श्रीधर ताउम्र अनजान ही रहा की जिसे वो दोषी मान रहा था, उसने तो निकलते हुए प्राण वापस ला दिए थे, सायद यहीं कारण रहा होगा श्रीधर और चन्दन के दोबारा मिलने का ||


                       "   धन्यवाद  "

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

Balidan :बलिदान

Balidan :बलिदान  कुलीन वंश में पैदा हो कर एक बार एक पंडित संसार से वितृष्ण हो संन्यासी का जीवन-यापन करने लगा।  उसके आध्यात्मिक विकास और संवाद से प्रभावित हो कुछ ही दिनों में अनेक सन्यासी उसके अनुयायी हो गये। एक दिन अपने प्रिय शिष्य अजित के साथ जब वह एक वन में घूम रहा था तब उसकी दृष्टि वन के एक खड्ड पर पड़ी जहाँ भूख से तड़पती एक बाघिन अपने ही नन्हे-नन्हे बच्चों को खाने का उपक्रम कर रही थी।  गुरु की करुणा बाघिन और उसके बच्चों के लिए उमड़ पड़ी। उसने अजित को पास की बस्ती से बाघिन और उसके बच्चों के लिए कुछ भोजन लाने के लिए भेज दिया। फिर जैसे ही अजित उसकी दृष्टि से ओझल हुआ वह तत्काल खाई में कूद पड़ा और स्वयं को बाघिन के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। भूखी बाघिन उसपर टूट पड़ी और क्षण भर में उसने अपना भूख शांत किया । अजित जब लौटकर उसी स्थान पर आया उसने गुरु को वहाँ न पाया। तो जब उसने चारों तरफ नज़रें घुमाईं तो उसकी दृष्टि खाई में बाघिन और उसके बच्चों पर पड़ी।  वे खूब प्रसन्न हो किलकारियाँ भरते दीख रहे थे।  किन्तु उनसे थोड़ी दूर पर खून में सने कुछ कपड़ों के चीथड़े बिखरे पड़े थे...

रविवर व्रत कथा

रविवार व्रत कथा : सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाले और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा हेतु सर्वश्रेष्ठ व्रत रविवार की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी. वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती.  रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था. उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी. अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी. पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी.  आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई. रात्र...