सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शिव पुराण, अध्याय ll 12 ll

माता गंगा को जाटोवो मे धारण किया 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रघुवंश में भगवान राम के पूर्वज भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की। 


गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। पर उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी। 

 यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की उपासना शुरू कर दी। शिव ने गंगा का गर्व दूर करने के लिए, संसार के दुखों को हरने वाले शिव शम्भू प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। 

भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया। गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया।

 वह छटपटाने लगी और शिव से माफी मांगी। तब शिव ने उसे जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

छठ माता की पूरी कहानी

छठ माता की कहानी  में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों द्वारा पराजित हो गए थे तब देवमाता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवानंद के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी, मैं आदित्य की आराधना कार्तिक मास की अमावस्या अर्थात दिवाली के दिन जाने के चार दिवस बाद या व्रत किया जाता है, जिसके करने के बाद छठ माता प्रसन्न होकर माता अदिति को सर्व गुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया,   इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्हें हम सूर्य भगवान के नाम से जानते हैं जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई ऐसा कहा जाता है,   कि उसी समय देवसेना सस्ती देवी के नाम से इस धाम का नाम रखा गया, और तभी से हिंदू रीति-रिवाजों में छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया,  छठ पूजा एक पावन और अनन्य श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पवित्र हिंदू पर्व है, छठ पूजा की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथों मैं कहीं नहीं है, इसके बावजूद छठ पर्व पावन पर्व माना जाता है,   यह मुख्यता बिहारियों का पर्व है, सर्वप्रथम बिहार में हिंदुओं द्वारा म...

जीवतिया मुहूर्त एवं कथा

हिन्दू मान्यताओ मे अष्विन माष के कृष्णपक्ष मे जीवतिया का पर्व मनाया जाता है, यह विशेषत्या उत्तरप्रदेश बिहार का पर्व है | जीवित्पुत्रिका पूजन का सही समय  आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर होगा. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहेगी. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा. जीवित्पुत्रिका कथा  नर्मदा नदी के पास एक नगर था कंचनबटी. उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था. नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी. उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया. लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया. सियारिन को अब भूख लगने लगी थी. मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया. पर चील ने संयम रखा औ...