सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वराह अवतार

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार वराह अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार हैं, जो भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया को अवतरित हुए। 

वराह अवतार की कथा :
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने जब दिति के गर्भ से जुड़वां रूप में जन्म लिया, तो पृथ्वी कांप उठी। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों पैदा होते ही बड़े हो गए। और अपने अत्याचारों से धरती को कपांने लगते हैं। यद्यपि हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बलवान थे, किंतु फिर भी उन्हें संतोष नहीं था। वे संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे। 
 


हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए बहुत बड़ा तप किया। उनके तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए ,ब्रह्मा जी से अजेयता और अमरता का वरदान पाकर हिरण्याक्ष उद्दंड और स्वेच्छाचारी बन गया। वह तीनों लोकों में अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने लगा। 
 हिरण्याक्ष ने गर्वित होकर तीनों लोकों को जीतने का विचार किया। 



वह हाथ में गदा लेकर इन्द्रलोक में जा पहुंचा। देवताओं को जब उसके पहुंचने की ख़बर मिली, तो वे भयभीत होकर इन्द्रलोक से भाग गए।



 देखते ही देखते समस्त इन्द्रलोक पर हिरण्याक्ष का अधिकार स्थापित हो गया। जब इन्द्रलोक में युद्ध करने के लिए कोई नहीं मिला, तो हिरण्याक्ष वरुण की राजधानी विभावरी नगरी में जा पहुंचा। वरुण ने बड़े शांत भाव से कहा - तुम महान योद्धा और शूरवीर हो। 


तुमसे युद्ध करने के लिए मेरे पास शौर्य कहां? तीनों लोकों में भगवान विष्णु को छोड़कर कोई भी ऐसा नहीं है, जो तुमसे युद्ध कर सके। अतः उन्हीं के पास जाओ। वे ही तुम्हारी युद्ध पिपासा शांत करेंगे। 
 वरुण का कथन सुनकर हिरण्याक्ष भगवान विष्णु की खोज में समुद्र के नीचे रसातल में जा पजुंचा। 



रसातल में पहुंचकर उसने एक विस्मयजनक दृश्य देखा। उसने देखा, एक वराह अपने दांतों के ऊपर धरती को उठाए हुए चला जा रहा है। हिरण्याक्ष वराह को लक्ष्य करके बोल उठा,तुम अवश्य ही भगवान विष्णु हो।


 धरती को रसातल से कहां लिए जा रहे हो? यह धरती तो दैत्यों के उपभोग की वस्तु है। इसे रख दो। तुम अनेक बार देवताओं के कल्याण के लिए दैत्यों को छल चुके हो। 


आज तुम मुझे छल नहीं सकोगे। फिर भी भगवान विष्णु शांत ही रहे। उनके मन में रंचमात्र भी क्रोध पैदा नहीं हुआ। वे वराह के रूप में अपने दांतों पर धरती को लिए हुए आगे बढ़ते रहे। 

हिरण्याक्ष भगवान वराह रूपी विष्णु के पीछे लग गया। उन्होंने रसातल से बाहर निकलकर धरती को समुद्र के ऊपर स्थापित कर दिया। हिरण्याक्ष उनके पीछे लगा हुआ था। 


अपने वचन-बाणों से उनके हृदय को बेध रहा था। भगवान विष्णु ने धरती को स्थापित करने के पश्चात हिरण्याक्ष की ओर ध्यान दिया। उन्होंने हिरण्याक्ष की ओर देखते हुए कहा,तुम तो बड़े बलवान हो। बलवान लोग कहते नहीं हैं, करके दिखाते हैं। 



तुम तो केवल प्रलाप कर रहे हो। मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं। तुम क्यों नहीं मुझ पर आक्रमण करते? बढ़ो आगे, मुझ पर आक्रमण करो। हिरण्याक्ष की रगों में बिजली दौड़ गई। वह हाथ में गदा लेकर भगवान विष्णु पर टूट पड़ा। 


भगवान के हाथों में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं था। उन्होंने दूसरे ही क्षण हिरण्याक्ष के हाथ से गदा छीनकर दूर फेंक दी। 

हिरण्याक्ष क्रोध से उन्मत्त हो उठा। वह हाथ में त्रिशूल लेकर भगवान विष्णु की ओर झपटा। भगवान विष्णु ने शीघ्र ही सुदर्शन का आह्वान किया, चक्र उनके हाथों में आ गया। 

उन्होंने अपने चक्र से हिरण्याक्ष के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। भगवान विष्णु के हाथों मारे जाने के कारण हिरण्याक्ष बैकुंठ लोक में चला गया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मा की यात्रा

आत्मा की यात्रा  : पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से आत्मा को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा तरह दिन तक अपने परिवार के साथ होता है उसके  बाद अपनी यात्राएं के लिए निकल पड़ता ""'!! प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के लिए गरूड़ पुराण करवाने से उसके आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है। गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है।  संसार त्यागने के बाद क्या होता है:-  मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में...

Balidan :बलिदान

Balidan :बलिदान  कुलीन वंश में पैदा हो कर एक बार एक पंडित संसार से वितृष्ण हो संन्यासी का जीवन-यापन करने लगा।  उसके आध्यात्मिक विकास और संवाद से प्रभावित हो कुछ ही दिनों में अनेक सन्यासी उसके अनुयायी हो गये। एक दिन अपने प्रिय शिष्य अजित के साथ जब वह एक वन में घूम रहा था तब उसकी दृष्टि वन के एक खड्ड पर पड़ी जहाँ भूख से तड़पती एक बाघिन अपने ही नन्हे-नन्हे बच्चों को खाने का उपक्रम कर रही थी।  गुरु की करुणा बाघिन और उसके बच्चों के लिए उमड़ पड़ी। उसने अजित को पास की बस्ती से बाघिन और उसके बच्चों के लिए कुछ भोजन लाने के लिए भेज दिया। फिर जैसे ही अजित उसकी दृष्टि से ओझल हुआ वह तत्काल खाई में कूद पड़ा और स्वयं को बाघिन के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। भूखी बाघिन उसपर टूट पड़ी और क्षण भर में उसने अपना भूख शांत किया । अजित जब लौटकर उसी स्थान पर आया उसने गुरु को वहाँ न पाया। तो जब उसने चारों तरफ नज़रें घुमाईं तो उसकी दृष्टि खाई में बाघिन और उसके बच्चों पर पड़ी।  वे खूब प्रसन्न हो किलकारियाँ भरते दीख रहे थे।  किन्तु उनसे थोड़ी दूर पर खून में सने कुछ कपड़ों के चीथड़े बिखरे पड़े थे...

रविवर व्रत कथा

रविवार व्रत कथा : सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाले और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा हेतु सर्वश्रेष्ठ व्रत रविवार की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी. वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती.  रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था. उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी. अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी. पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी.  आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई. रात्र...